Ghazipur छठ व्रत भारतीय परम्परा का एक वैज्ञानिक आरोग्यपूर्ण अनुष्ठान है-शिवराम दास

 


छठ मईया को मनाने और उत्तरायण सूर्य को अर्घ्य देने का पर्व है ‘छठ’


छठ का पर्व हमारी आस्था के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।


छठ पर्व पूर्वोत्तर प्रदेश का बड़ा त्यौहार है। यह भारतीय परम्परा का एक वैज्ञानिक आरोग्यपूर्ण अनुष्ठान है।अयोध्या वासी मानस मर्मज्ञ भागवतवेत्ता श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने बताया की हमारे पूर्वजों ने विज्ञान और धर्म का समन्वय करके जीवन को, स्वास्थ्य को समृद्ध करने हेतु अनेक प्रयोग किये हैं। हमारे यहां के पर्वों में धर्म और विज्ञान का सुंदर समन्वय है। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन छठ पर्व मनाया जाता है। लेकिन दीपावली के बाद से ही इस पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। छठ पर्व के दौरान तन की, मन की, घर आंगन की, चूल्हा चौके की, गलियों आदि की सफाई की जाती है। हमारे पूर्वजों ने छठ पर्व के साथ सफाई के महत्व को इस तरह जोड़ दिया है कि सफाई में थोड़ी सी भी त्रुटि रहने पर छठी मईया के श्राप से आदमी प्रभावित होगा अर्थात्‌ गंदगी या गंदे वस्तुओं के सेवन से आदमी बीमार होता है इसलिए स्वास्थ्य के लिए सफाई पर विशेष ध्यान दें।


छठ पर्व में प्राकृतिक, भौतिक, नैतिक, शारीरिक, मानसिक, आत्मिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अपूर्व संगम है। छठ पर्व की वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता अकाट्‌य है।


प्रकृति की दृष्टि से–नदी, तालाब, झील तथा पोखर के जल जीवन के आधार हैं। यही कारण है कि हमारे देश में नदियों को मां का स्थान दिया गया है। आज हमने नदियों को प्रदूषित कर दिया है। इन्हें स्वच्छ बनाने से ही जीवन के अस्तित्व को बचाया जा सकता है। सामाजिक दृष्टि से छठ पर्व में ऊंच-नीच सबका भेद मिट जाता है इस तरह से सामाजिक सद्‌भाव की भावना पनपती है।


नैतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से इसमें नैतिक सहयोग और साहचर्य के भाव का संचार होता है। खरना और छठ के दिन किये गये वैज्ञानिक उपवास में तपस्या का भाव छिपा है। तपस्या की अग्नि से जीवन की समस्त अदृश्य शत्रु–क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, नैराश्य, क्षोभ, भय, कुंठा तथा हिंसा का विनाश होता है। उगता सूर्य जन्म का तथा डूबता सूर्य मृत्यु का प्रतीक है। जन्म और मृत्यु एक दूसरे के पोषक हैं। पुराने का अवसान ही नवीन का विहान है। छठ पर्व हमें यही संदेश देता है–उठो! जागो! चलो एवं स्वयं को पहचानो।


शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से–छठ पर्व स्वास्थ्य संरक्षण एवं संवर्धन की दृष्टि से शारीरिक, पर्यावरणीय,


सामाजिक एवं आसपास की सफाई का महत्व है। छठ पर्व का मूल केन्द्र बिन्दु जल में खड़े होकर उगते और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य प्रदान करना, इसका खास महत्व है।


छठ पर्व स्वास्थ्य एवं ऊर्जा का खजाना है। यह पर्व सूर्य स्नान का वैज्ञानिक महानुष्ठान है। सूर्य की किरणों में अद्‌भुत शक्तियां भरी हैं, यही प्राणियों और वनस्पतियों की जीवनी शक्ति है। सूर्य कि किरणें हमें हर रोगों से


बचाती हैं। विभिन्न देशों में किये गये अनुसंधानों से पता चला है कि सूर्य स्नान न करने से 100 प्रकार की खतरनाक बीमारियां होती हैं जिनमें मधुमेह, घुटने, गर्दन, कमर एवं हडि्‌डयों में दर्द, आस्टियोपोरोसिस, आस्टियोआर्थराइटिस, कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, ओवरी तथा गर्भाशय का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर आदि रोग होते हैं।


इस पर्व में उगते हुए सूर्य तथा डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते समय पात्र से जल सतत एवं समरूप गिरने से जल सीकर पुंज का निर्माण होता है जो सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों को छान देती है। उपयोगी


किरणें शरीर पर पड़ती हैं जो जैव रासायनिक प्रक्रिया द्वारा रोग मुक्त एवं स्वास्थ्य की वृद्धि करती हैं।


इस पर्व के अनुष्ठान से उपवास काल में शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विश्राम मिलता है। आटो हीलिंग तथा इम्यून सिस्टम तेज हो जाता है। इसमें उपवास का खासा महत्व है। इस पर्व को मनाने वाला साधक-साधिका ऊर्जा, आनंद से भर जाता है तथा उसका स्वास्थ्य भी अच्छा हो जाता है।

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