पाप के द्वारा कमाई हुई संपत्ति सुख दे सकती है किंतु प्रयास के द्वारा कमाई हुई संपत्ति सुख के साथ-साथ शांति और सुकून भी देती है-फलाहारी बाबा

 


 गाजीपुर जनपद के बाराचंवर ब्लाक मुख्यालय पर आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान श्री राम कथा के दौरान अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने उपस्थित श्रोताओं से कहा की प्रत्येक मनुष्य वास्तव में साधक है परमात्मा ने कृपा करके मनुष्य शरीर केवल स्वयं के कल्याण के लिए प्रदान किया है गीता में अर्जुन बार-बार कल्याण की चिंता करता है ।मनुष्य अपने उद्देश्य को पहचान कर दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर मैं संसारी नहीं हूं प्रत्युत साधक हूं ।संसार की मान्यताएं केवल सांसारिक व्यवहार के लिए तो ठीक है पर परमात्मा प्राप्ति में यह सब बाधक है। 



जगत जगदीश को पाने का साधन है सिद्धि नहीं। साधना की दृष्टि से परमात्मा को पाने के दो रास्ते हैं प्रतीक्षा और प्रयास विश्वामित्र ने प्रयास के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति की तो शबरी और अहिल्या ने प्रतीक्षा के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति की प्रतिक्षा जब तीब्रअभीप्सा बन जाती है तो वही परमात्मा का रूप धारण कर लेती है ।राम राज्य की स्थापना सत्ता के द्वारा नहीं बल्कि समर्पण के द्वारा ही संभव है ।राम राज्य की स्थापना का नीव श्री रामचरितमानस में भरत जी ने 14 वर्ष समर्पण करके तैयार किया था तब राम राज्य की सत्ता सत्ता पर सत्तासीन हुई और राम ने अपने सत्यता के बल पर सत्ता को संचालित किया जो आज भी आदर्श के रूप में प्रत्येक मनुष्य के मानस पटल पर अमिट रूप में अंकित है। सत्ता के माध्यम से चक्रवर्ती नरेश महाराज दशरथ ने रामराज्य की कल्पना की किंतु अधूरा रह गया व्यास गद्दी के माध्यम से वशिष्ठ जी के द्वारा राम राज्य की स्थापना संपन्न हुई समाज में अस्थाई परिवर्तन लाने के लिए संस्कार रूपी पाठ आवश्यक नहीं अति आवश्यक है। हमारे भारतीय संस्कृति सभ्यता सनातन धर्म में पहला पाठ मातृ देवो भव। पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव ।अतिथि देवो भव।है जो इसका अनुसरण करता है अर्थ धर्म काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है ।कथा के विराम दिवस पर नारी बाबा ने कहा कि प्रत्येक माता-पिता को अपने पुत्र पुत्रियों को संपत्ति वान बनाने की चिंता छोड़कर संस्कारवान बनाने की चिंता करनी चाहिए संपत्ति वान व्यक्ति के पीछे संस्कार नहीं चलता लेकिन संस्कारवान व्यक्ति के पीछे संपत्ति एक न एक दिन चलने पर मजबूर हो जाती है पैसा के लिए प्रयास करना चाहिए किंतु ध्यान रहे पैसा के लिए पाप ना हो जाए । पाप के द्वारा कमाई हुई संपत्ति सुख दे सकती है किंतु प्रयास के द्वारा कमाई हुई संपत्ति सुख के साथ-साथ शांति और सुकून भी देती है।

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